देहरादून। सुरंग से बाहर आए श्रमिकों के परिजनों संग सीएम धामी खेला भैलो। उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल से श्रमिकों की सुरक्षित वापसी के बाद देहरादून स्थित सीएम आवास में ईगास यानी बूढ़ी दीपावली का उत्सव मनाया गया। वैसे तो दिवाली के 11वें दिन यानी एकादशी को उत्तराखंड में ईगास मनाने का रिवाज है, लेकिन मजदूरों के सुरंग में फंसे होने के चलते सीएम धामी ने आवास पर आयोजित कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। वहीं, जब मजदूर सुरक्षित वापस आए हैं तो उन्होंने बुधवार को ही उत्सव मनाया। सीएम धामी भैलो खेलकर लोकगीतों पर जमकर थिरके। इस अवसर पर सीएम आवास में श्रमिकों के परिजन भी मौजूद थे। सीएम ने इन सभी का माल्यार्पण कर और शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया। कार्यक्रम में सांस्कृतिक दलों द्वारा मनमोहक प्रस्तुतियां दी गईं।
बता दें कि उत्तराखंड के गढ़वाल में सदियों से दिवाली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं के क्षेत्र में इसे बूढ़ी दीपावली कहा जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं।रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है। मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया।
कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद यह ईगास मनाई जाती है। खास बात ये है कि यह पर्व भैलो खेलकर मनाया जाता है।तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। बग्वाल के दिन पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है।
फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं।भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है। कई ग्रामीण भैलो से करतब भी दिखाते हैं। पारंपरिक लोकनृत्य चांछड़ी और झुमेलों के साथ भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू आदि लोकगीतों के साथ मांगल व देवी-देवताओं की जागर गाई जाती हैं।