पन्तनगर, विश्वविद्यालय में ठेका कर्मियों को वेतन का भुगतान ना होने पर विरोध बढ़ता ही जा रहा है। सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की घोर लापरवाही व मनमानी
पन्तनगर, विश्वविद्यालय में ठेका कर्मियों को वेतन का भुगतान ना होने पर विरोध बढ़ता ही जा रहा है। सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की घोर लापरवाही व मनमानी के चलते 2 माह से वेतन नही मिला है। गुरुवार को ठेका कर्मियों के धरने पर पहुंचे पूर्व दर्जा राज्यमंत्री डॉ० गणेश उपाध्याय ने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय को 16500 एकड़ जमीन दी गई थी ताकि अपने संसाधनों से अपने विश्वविद्यालय के खर्चे तथा अनुसंधान पर कार्य कर सकें परंतु 2005 में सिडकुल के निर्माण में 6500 एकड़ जमीन सिडकुल को 270 करोड़ रु रिवाल्विंग फंड के रुप में जमा कर दी गई। जिससे विश्वविद्यालय के खर्चे निकल पाऐ। सरकार ने विभिन्न कार्यों में भी पंतनगर विश्वविद्यालय की सैकड़ों एकड़ भूमि हस्तांतरित कर दी। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट निर्माण के लिए 1072 एकड़ भूमि नि: शुल्क प्रथम फेस मे हस्तांतरित की जा रही है। द्वितीय फेस में भी लगभग 1500 भूमि एकड़ भूमि दी जाएगी। जिससे पंतनगर विश्वविद्यालय की लगभग 6000 एकड़ भूमि ही शेष बचेगी। इस प्रकार पंतनगर विश्वविद्यालय की भूमि की यदि निशुल्क बंदरबांट की गई तो पंतनगर विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की तनख्वाह, वेतन, भत्ते तथा अनुसंधान के लिए हालत खस्ता हो चुकी है। वर्तमान भाजपा सरकार में पंतनगर विश्वविद्यालय की खस्ताहाल स्थिति जग जाहिर है। हरित क्रांति के जनक पंतनगर विश्वविद्यालय का नाम पूरी तरह समाप्त होने की कगार पर है। सरकार द्वारा एयरपोर्ट के लिए निःशुल्क भूमि हस्तांतरण नही किया जाना चाहिए, कम से कम 25 हजार करोड़ रु० रिवाल्विंग फंड बनाया जाना चाहिए ताकि पन्तनगर विश्वविद्यालय का अस्तित्व बचा रह सके।